जाट-बाहमण

avi-jaat

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एक जाट कै बाळक ना होवैं थे ।
एकदिन एक भाठ आ-ग्या अर
जाटणी नैआपणा रोणा रो दिया ।
बाहमण बोल्या- बेटी, रोवै मतना, मैं परसोंबद्रीनाथ जाऊँ सूँ,
ऊड़ै तेरे
नामका दीवा जळा दूंगा - अर भगवान सबभली करैंगे,
चिन्ता ना करियो ।
वो बाहमण दस साल पाच्छै उस जाट कैघरां आया, तै
देख्या अक ऊड़ै आठ-नौ बाळक
हांडैं थे ।
उसनै पड़ौसीतैं बूझी अक ये बाळक किसके सैं ?
पड़ौसी बोल्या अक महाराज ये उस्सैके सैं जिसका तू दस
साल पहल्यांबद्रीनाथ
में दीवा बाळ-कै आया था।
बाहमण बोल्या - रै, यो जाट कित सै ?
पड़ौसी बोल्या - महाराज,वो तै कल बद्रीनाथ चल्या गया -
तेरे दीवे नै बुझा वण !!!
 
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