रोज

रोज नए चेहरो से मुलाकात होती है
जाने अन्जाने में बात भी होती है

सब फिरते है नकली चेहरा लिए हुए
कहाँ असलियत भी बयाँ होती है

मालूम नहीं कैसे जी लेते है लोग
दिखती नहीं पर सीने मैं आग होती है

हरमन जरा बच के चल राहें आसान नहीं
अपनों की नीयत भी बड़ी ख़राब होती है

कलम :- हरमन बाजवा ( मुस्तापुरिया )


 
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