मुश्किलों का दौर था

मुश्किलों का दौर था बद्द दुआएं मिल रही थी गलतियाँ भी हो रही थी खता भी दोनों की ही थी ना दूर हो पायी ग़लतफ़हमियाँ दूरियां भी बढ़ रही थी रुसवा हमने भी नहीं किया और बेवफा वो भी ना थी कलम :- हरमन बाजवा ( मुस्तापुरिया )
 
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