हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&#2366

हालांकि 16वीं शताब्दी के भारतवर्ष में ही सम्राट अकबर ने अपने सेनापति मानसिंह की बहन जोधाबाई से विवाह कर तथा एक इससे पूर्व अकबर के पिता मुंगल शासक हुमायुं ने कर्मवती से अपने हाथों में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक रक्षा बंधन बंधवाकर भारतवासियों के साथ-साथ शेष दुनिया को भी यह संदेश दे दिया था कि भारतवर्ष गंगा-जमुनी सांझी तहजीब रखने वाला दुनिया का सबसे अनूठा व निराला देश है। उसके पश्चात प्रसिद्ध कवियों जैसे रहीम, जायसी तथा रसखान आदि ने भी हिंदू धर्म के आराध्य देवताओं की शान में लोकप्रिय कसीदे गढ़ कर भारत में सर्वधर्म संभाव की जमीनी हकीकत को साकार किया। परंतु समय बीतने के साथ-साथ भारत में अपने पैर जमाने वाली उपसाम्राज्*यवादी शक्तियों से भारत की इस सहिष्णुता तथा सर्वधर्म समभाव जैसी बेशकीमती ताकत को पचाया नहीं जा सका। बावजूद इसके कि इन पश्चिमी शक्तियों द्वारा भारत पर हुकूमत करने के दौरान हमारी सांप्रदायिक एकता तथा धार्मिक सद्भावना को आहत करने के तथा धर्म के नाम पर हमें विभाजित करने के तमाम प्रयास किए गए। परंतु हैदर अली व टीपू सुल्तान से लेकर अशफाकुल्ला तक की नस्लों ने हमें धर्म के आधार पर विभाजित करने वाली उन शक्तियों को अपने तीखे तेवरों तथा भारतीयता के प्रति अपने समर्पण से यह बता दिया कि हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे। हां इन विदेशी तांकतों ने अपनी चतुर बुद्धि का प्रयोग करते हुए 1947 में देश की स्वतंत्रता के समय ही हमें धर्म के आधार पर विभाजित किए जाने का एक शगूफा जरूर छोड़ दिया। निश्चित रूप से इस विभाजन का कारण कुछ ऐसी सांप्रदायिक तांकतें बनीं जो अंग्रेजों की भारत को कमजोर करने की मंशा को पूरा करने में सहायक सिद्ध हुई। परंतु 1947 का तथाकथित धर्म आधारित विभाजन हमें भौगोलिक विभाजन के साथ-साथ कुछ ऐसी सीख व तुजुर्बे भी दे गया जिसके बल पर हम गत् 6 दशकों से दुश्मन के उन सभी हथकंडों व मंसूबों को नाकाम करते आ रहे हैं जो हमारी एकता व हमारे सर्वधर्म समभाव जैसे बुनियादी व प्राचीन सूत्र पर प्रहार करने की नाकाम कोशिश करते हैं। निश्चित रूप से भारत गत् तीन दशकों से आतंकवाद से बुरी तरह से जूझ रहा है। दरअसल आतंकवाद हमें आजादी के साथ ही साथ विरासत में प्राप्त हुआ था। जहां सांप्रदायिक विचारधारा ने देश की पहली राजनैतिक हत्या के रूप में हमसे महात्मा गांधी जैसे सर्वधर्म सम्भाव के सबसे बड़े ध्वजावाहक को छीन लिया वहीं 1947 में उसी दौरान भारतवर्ष की दो भुजाएं समझी जाने वाली दो क़ौमों के लोग अथात् हिंदू व मुसलमान एक दूसरे के हाथों लाखों की तादाद में धर्म के नाम पर ही कत्ल कर दिए गए। सांप्रदायिक शक्तियों के फलने-फूलने तथा उनके उर्जा प्राप्त करने का सिलसिला तब से अब तक कायम है। पाकिस्तान नामक नए देश के उदय के बाद उसी र्ता पर आगे चलकर ख़ालिस्तान की मांग का सिलसिला भी चला। सांप्रदायिक शक्तियों ने खालिस्तान आंदोलन में भी अपने हाथ ख़ूब रंगे। सिख समुदाय से संबंध रखने वाले आतंकियों द्वारा 1980 के दशक में गैर सिख समुदाय के हजारों बेगुनाह लोगों को चुन-चुन कर अपना निशाना बनाया गया। इस दौरान भी जिस किसी सिख समुदाय के नेता ने ख़ालिस्तान आंदोलन के विरुद्ध तथा भारतीयता के पक्ष में अपने स्वर बुलंद किए उसे भी आतंकवादियों के क़हर का सामना करना पड़ा और आख़िकार इस रक्तरंजित आंदोलन का अंत आप्रेशन ब्लयू स्टार, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीकी हत्या,हरचरण सिंह लोंगोवाल तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह जैसे विशिष्*ट लोगों की हत्या के रूप में हुआ। परंतु देश में आए इतने बड़े भूचाल के बावजूद आज भी हमारी एकता व ख़ासतौर पर हमारी भारतीयता उसी प्रकार माबूत, स्थिर व कायम है।
कश्मीर हमारे देश का वह अभिन्न अंग है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह भारत की जमीन पर फिरदौस यानि जन्नत की हैसियत रखता है। परंतु भारत विरोधी विशेषकर भारतीयता की विचारधारा का विरोध करने वालों को भारत की इस विश्व प्रसिद्ध फिरदौस की शांति तथा कश्मीर की गंगा जमुनी सांझी तहजीब रखने वाली कश्मीरियत नहीं सुहाती। परिणामस्वरूप कभी कश्मीर की आज़ादी के नाम पर तो कभी कश्मीर के पाकिस्तान में विलय के नाम पर तो कभी पूर्ण स्वायतता जैसे मुद्दो को लेकर वहां भी अराजकता का माहौल पैदा करने की पूरी कोशिश की जाती रही है।
कश्मीर में भी गत् तीन दशकों से जहां कश्मीरी पंडितों को मारा जाता रहा है व उन्हें कश्मीर छोड़कर अन्यत्र जाने के लिए मजबूर किया जाता रहा है, वहीं उन कश्मीरी मुस्लिम नेताओं को भी इन आतंकी व अतिवादी तांकतों का क़हर झेलना पड़ा है जिन्होंने भारतीयता की आवाज बुलंद की या भारत के साथ रहने जैसे विचार व्यक्त किए। धर्म के नाम पर तथा सीमांत प्रदेश होने के कारण भी पाकिस्तान कश्मीर की अलगाववादी विचारधारा रखने वाली शक्तियों का पूरा समर्थन करता आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान यह बार-बार जोर देकर कहता रहता है कि कश्मीर आंदोलन को हमारा नैतिक व राजनैतिक समर्थन दिया जाना जारी रहेगा। यहां भी आश्चर्यजनक रूप से यह देखा जा सकता है कि कश्मीर के आंतरिक तथा उसे मिलने वाले बाहरी समर्थन के बावजूद कुल मिलाकर कश्मीर आज भी पहले की ही तरह हमारे देश का एक अभिन्न व अखंड अंग है और कश्मीरियत हमारे भारतीय समाज की एक बेशंकीमती तहजीब।
1999 में कश्मीर के कारगिल व द्रास क्षेत्र की ओर से पाकिस्तान के नियमित फौजियों द्वारा घुसपैठियों के वेश में भारत में घुसने तथा कश्मीर के एक प्रमुख सामरिक क्षेत्र पर कब्*जा जमाने का प्रयास किया गया। घुसपैठ के इस विदेशी प्रयास को कश्मीरी आतंकी संगठनों का भी समर्थन प्राप्त था। परंतु हमारी भारतीय सेना ने जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल रहा करते हैं, सीमा पार के इस दुस्साहस का मुंह तोड़ जवाब दिया। और कारगिल घुसपैठ के बाद भी हम पूर्ववत एक ही रहे। आख़िरकार हमारी एकता,सहिष्णुता व सर्वधर्म समभाव जैसे अपराजित से समझे जाने वाले शस्त्र से पराजित होकर इन अतिवादी आतंकी शक्तियों ने भारत के धर्मस्थलों को अपने निशाने पर लेना शुरु किया। कभी जम्मु के रघुनाथ मंदिर पर हमला हुआ तो कभी गुजरात के अक्षरधाम मंदिर को निशाना बनाया गया। कभी वाराणसी के संकटमोचन मंदिर को आतंकवादियों ने अपने नापाक मंसूबों के निशाने पर लिया तो कभी धर्मिक त्यौहारों के अवसर पर इनके द्वारा ख़ून की होलियां खेली गई। परंतु यहां भी हमारी सहिष्णुता व सर्वधर्म सम्भाव सिर चढ़कर बोलते दिखाई दिए। हमारे भारतवासियों ने इन आतंकियों के मंकसद को, इनके मंसूबों को भली-भांति समझा तथा इनके द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक आतंकी हमलों का जवाब हमने बार-बार अपनी एकता, सहिष्णुता तथा सांप्रदायिक सौहार्द से ही दिया।
इसके बाद बारी आई देश के स्वाभिमान को झकझोरने की । हमारी एकता की शक्ति से इर्ष्या रखने वाले आतंकियों ने अब भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े केंद्र भारतीय संसद भवन को अपना निशाना बनाया। इस मौक़े पर एक बार फिर देश विचलित हुआ। भारतीय सेना सीमापार से प्रायोजित होने वाली इस दुस्साहसिक आतंकी कार्रवाई का जवाब देने पुन: अपनी बैरकों से बाहर निकल पड़ी थी। परंतु हमारे शासकों ने फिर यही सोचा कि हमारी जवाबी कार्रवाई अंततोगत्चा इन आतंकी तांकतों के मंसूबों को ही पूरा करेगी और यही सोचकर हम फिर ख़ामोश रह गए। इसके बाद तमाम छोटी व बड़ी घटनाओं के बाद भारत में मालेगांव, मक्का मस्जिद,समझौता एक्सप्रेस, अजमेर शरींफ तथा जयपुर जैसी कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई जिनमें विदेशी तांकतों के नहीं बल्कि इनमें से कई घटनाओं में स्वदेशी शक्तियों का हाथ होने के पुख्ता सुबूत मिले। हद तो यह है कि इनमें से कई मामलों में भरतीय सेना के कई अधिकारी तथा तमाम तथाकथित साधू-संतों व इनके अनुयाईयों के हाथ होने के प्रमाण मिले। णाहिर है यह भी वही तांकतें हैं जो हमें संगठित रहते देख नहीं पाती। परंतु इन शक्तियों के मंसूबों के बेनंकाब होने के बावजूद हम फिर भी बड़े गर्व से यह कह सकते हैं कि भले ही देश के विभाजक प्रवृति के चंद लोगों ने चाहे व हिंदू हों या मुस्लिम, सिख अथवा ईसाई समुदाय के सदस्य,हमें बांटने व एक दूसरे का ख़ून बहाने का कितना ही प्रयास क्यों न किया हो परंतु इनके किसी भी राष्ट्र विभाजन के प्रयासों को हमारे देश के बहुसंख्य समाज ने कभी सफल नहीं होने दिया। बजाए इसके ऐसे संकट व परीक्षा की घड़ियों में हम और अधिक संगठित होते ही देखे गए हैं।
हमारी एकता, हमारी सहिष्णुता व हमारा सर्वधर्म समभाव आख़िरकार मुंबई पर हुए 2611 के हमले के बाद एक बार फिर उस समय सिर चढ़कर बोला जबकि 2611के मुंबई हमले में मारे गए 9 आतंकियों को मुंबई के मुसलमानों द्वारा कब्रिस्तान में दफन किए जाने से साफ़ इंकार कर दिया गया। मुंबई में जहां 2611 के शहीदों की याद में सामूहिक रूप से तमाम सर्वधर्म शोक सभाएं व शोक मार्च आयोजित किए गए वहीं मुस्लिम समुदाय द्वारा विशेष रूप से एक बड़ा शांति मार्च उन्हीं स्थलों से होकर निकाला गया जिन स्थलों को आतंकियों ने अपने निशाने पर लिया था बेशक आतंकी तांकतें अपने नापाक इरादों को कार्यरूप देने में धर्म के नाम का प्रयोग क्यों न करती हों परंतु आख़िकार भारत का बहुसंख्य समाज व बुद्धिजीवी समाज उपरोक्त सभी घटनाओं के बाद इस निर्णय पर पहुंच चुका है कि आतंकवाद न हिंदू होता है न मुस्लिम, न सिख न ईसाई। बल्कि आतंकवाद केवल आतंकवाद है। आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त किसी भी समुदाय का व्यक्ति स्वयं अपने ही धर्म को दांगदार व बदनाम करता है तथा इससे मानवता आहत होती है। दूसरी ओर यही आतंकवाद जहां हमें इनके इरादों से परिचित कराता है वहीं हमें यह सीख भी देता है कि इनके हर नापाक आतंकी मंसूबे का जवाब हमारी एकता, हमारी सहिष्णुता, हमारी भारतीयता, हमारा सर्वधर्म समभाव तथा हमारा सांप्रदायिक सौहार्द्र ही है। यही हमारी प्राचीन विरासत थी और भविष्य में भी यही हमारी विश्वव्यापी पहचान रहेगी। आतंकी तो क्या दुनिया की कोई भी मानवता विरोधी ताकत भारतीयों की भारतीयता को चुनौती नहीं दे सकती।
 

Mahaj

YodhaFakeeR
Re: हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&#

 

pps309

Prime VIP
Re: हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&#

Why only Khalistan??
Before that and even after that there have been so many separatist movement by majority Hindu population where lot of blood has gone under the bridge.
Some of them which were/are quite noticeable are, Tamil movement in tamilnadu (i guess it must be the first one after 47), Naga movement (still a parallel democracy runs there), Bodoland, Mizo movement and most recent Naxalite movement (they openly attacks armed police forces and not sitting in any holy temple or shrine still no army action against them).
It seems some people close their one eye and use only one eye to see what they like.
 

userid50966

Well-known member
Re: हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&#

ek taraf ekta or akhand taki baat karte hain yeah lok dusri taraf peeth pe war karte hain,
humea darh nahi dushmano ka, dartea hain to apno ki bewafaee sea.

shanti ya insaneeyat ki baat karne wale ek swaal ka jwab to dette ja,
jo lok bas rahe hain dusrea mulkon me kya whan ka dard tujhe dikhaee nahi detta?


hum lok jinhe bhartea kha jata hai ettnea gulami ke addi ho chukea hain ke hum ajh bhi ander se gulam hain, jo batt dusrea mulkon ko baddeyea laghti hai hum wahee pesh karte hain , baat karte hain jo lok azaadi ki kya onhea azaadi ka meaning bhi ptah hai?
 

pps309

Prime VIP
Re: हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&#

Naxals kill more than terrorists each year

Naxals kill more than terrorists each year

Par aena RSS diya puchha ya jansanghiya nu dujiya kauma badnaam karan lai sirf Khalistan di 10 saal purani ya kashmir di larai disdi aa.
 
Re: हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&#

सांप्रदायिक शक्तियों के फलने-फूलने तथा उनके उर्जा प्राप्त करने का सिलसिला तब से अब तक कायम है।

Yeh bakwaas kahi apney Rss ki nai kitab "bakwaas karney ney key naey naey tarikey" meh seey toh nahi liya?
 
Re: हमारी परंपरा- सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभ&a

Is this media perosn a terrorist 2??..one who was harrased by the indian Goverment for exposing their deeds in 1984? :pop

https://www.unp.me/f15/brahma-chellaney-only-independent-reporter-of-1984-bluestar-77667/

Is this professor a terrorist 2??...who was raped in 1984 because she wanted to study the Punjab Problem? :rolleyes:

https://www.unp.me/f15/indias-shame-the-personal-ordeal-of-cynthia-mahmood-83001/


Is Jaswant Singh Kalra a terrorist 2? one who exposed countless murders by the Punjab police forces who were acting on direct orders of the centre Government?? :zzz

http://en.wikipedia.org/wiki/Jaswant_Singh_Khalra, the free encyclopedia@@AMEPARAM@@/wiki/File:Unbalanced_scales.svg" class="image"><img alt="Unbalanced scales.svg" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/fe/Unbalanced_scales.svg/45px-Unbalanced_scales.svg.png"@@AMEPARAM@@commons/thumb/f/fe/Unbalanced_scales.svg/45px-Unbalanced_scales.svg.png

So unless you can respond to these i suggest ki ap apni bakwaas band rakhey. :thappar
 
Top