सेवा से यश और संतोष मिलता है

मदर टेरेसा के जीवन की एक घटना है, जो उनके सेवा भाव को दर्शाती है और हमें भी सेवा-कर्म की प्रेरणा देती है। मदर टेरेसा कोलकाता के कालीघाट के निकट मरणासन्न लोगों की सेवा करनेे के लिए निर्मल ह्रदय भवन का निर्माण करवाना चाहती थीं। इस कार्य में उनके सहयोगी भी साथ थे। वे जब संबंधित स्थल पर भवन की नींव रख रही थीं, तभी उनके विरोधी विपरीत टिप्पणियां करने लगे। बात काफी बढ़ गई और भीड़ एकत्रित हो गई किंतु मदर टेरेसा तनिक भी नहीं घबराई। वे साहसपूर्वक वहीं खड़ी रही और भीड़ को संबोधित करते हुए बोलीं- मुझे आप सभी मिलकर मार डालिए। ईसा की राह पर मुझे मरना भी स्वीकार है किंतु यह गुंदागर्दी बंद करें और मरणासन्न लोगों को शांति से जीने दें। बात बढ़ती गई और यह मामला पुलिस कमिश्नर तक पहुंचा। उन्होंने कहा- मैं स्वयं उस स्थल के कार्यों की निगरानी करूंगा और तब निर्णय दूंगा कि निर्मल ह्रदय बनेगा या नहीं।
कमिश्नर जब वहां पहुंचे, तो मदर और उनके दल का कार्य देखकर दंग रह गए। वे सभी पूरी तन्मयता से लोगों की सेवा कर रहे थे और गंभीर रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों की भी बिना किसी घृणाभाव के देख-रेख कर रहे थे। कमिश्नर के वहां पहुंचते ही विरोधी लोग खुश हो गए, किंतु कमिश्नर बोले- मैं मदर टेरेसा को यहां से जाने के लिए एक ही शर्त पर कहूंगा कि आप सब अपनी माता-बहनों को ऐसे काम में लगा दो। यह सुनकर विरोधी निरुत्तर हो गए और कमिश्नर ने भवन-निर्माण की अनुमति दे दी।
घटना का संकेत यह है कि जहां सेवा का पवित्र उद्देश्य होता है, वहां बाधाओं का सामना करने का साहस भी उत्पन्न हो जाता है और बाधाएं निराकृत भी हो जाती है। वस्तुत: सेवा भाव यश और संतोष दोनों का वाहक है।
 

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