'MANISH'
yaara naal bahara
एक दिन घनश्यामदास बिड़ला अपने दफ्तर जा रहे थे। दफ्तर जाने में देर हो गई थी। इसलिए ड्राइवर गाड़ी तेज गति से चला रहा था।
जब गाड़ी एक तालाब के पास से होकर गुजर रही थी, तो वहां लोगों की भीड़ लगी दिखी। बिड़लाजी ने ड्राइवर से पूछा- क्या बात है? इतनी भीड़ क्यों है? ड्राइवर ने उतरकर देखा फिर बताया कि सर, कोई लड़का पानी में डूब रहा है।
घनश्यामदास तत्काल गाड़ी से उतरे और उस भीड़ को चीरते हुए तालाब तक पहुंचे। वहां जाकर देखा तो हैरान रह गए। एक दस वर्षीय बालक पानी में हाथ-पैर मार रहा था, किंतु किनारे पर खड़े लोगों में से कोई भी उसकी मदद के लिए आगे आने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।
बस लोग खड़े होकर बचाओं, बचाओं चिल्ला रहे थे। बिड़लाजी तुरंत ही जूते पहने-पहने ही पानी में कूद गए। बालक को पकड़ा और तैरकर उसे भी बाहर ले आए। फिर उसे अपनी कार में डालकर अस्पताल पहुंचे। बच्चे के पेट में काफी पानी भर गया था। किंतु कुछ देर के इलाज के बाद वह स्वस्थ हो गया।
बिड़लाजी उसी तरह भीगे हुए अपने दफ्तर पहुंचे। उन्हें इस दशा में देखकर सभी कर्मचारी अवाक रह गए। जब उन सभी को बिड़लाजी के द्वारा बालक के प्राण बचाए जाने का समाचार मिला तो हर ओर से बिड़लाजी की प्रशंसा के स्वर उठने लगे। सभी ने कहा- सर, आप महान है। इस पर बिड़लाजी ने कहा- इसमें महानता की क्या बात है? यह तो मेरा कर्तव्य था।
सच ही है मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है और जो अपने सारे स्वार्थ व काम छोड़कर इस धर्म का पालन करता है वही सच्चा मानव है।
जब गाड़ी एक तालाब के पास से होकर गुजर रही थी, तो वहां लोगों की भीड़ लगी दिखी। बिड़लाजी ने ड्राइवर से पूछा- क्या बात है? इतनी भीड़ क्यों है? ड्राइवर ने उतरकर देखा फिर बताया कि सर, कोई लड़का पानी में डूब रहा है।
घनश्यामदास तत्काल गाड़ी से उतरे और उस भीड़ को चीरते हुए तालाब तक पहुंचे। वहां जाकर देखा तो हैरान रह गए। एक दस वर्षीय बालक पानी में हाथ-पैर मार रहा था, किंतु किनारे पर खड़े लोगों में से कोई भी उसकी मदद के लिए आगे आने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।
बस लोग खड़े होकर बचाओं, बचाओं चिल्ला रहे थे। बिड़लाजी तुरंत ही जूते पहने-पहने ही पानी में कूद गए। बालक को पकड़ा और तैरकर उसे भी बाहर ले आए। फिर उसे अपनी कार में डालकर अस्पताल पहुंचे। बच्चे के पेट में काफी पानी भर गया था। किंतु कुछ देर के इलाज के बाद वह स्वस्थ हो गया।
बिड़लाजी उसी तरह भीगे हुए अपने दफ्तर पहुंचे। उन्हें इस दशा में देखकर सभी कर्मचारी अवाक रह गए। जब उन सभी को बिड़लाजी के द्वारा बालक के प्राण बचाए जाने का समाचार मिला तो हर ओर से बिड़लाजी की प्रशंसा के स्वर उठने लगे। सभी ने कहा- सर, आप महान है। इस पर बिड़लाजी ने कहा- इसमें महानता की क्या बात है? यह तो मेरा कर्तव्य था।
सच ही है मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है और जो अपने सारे स्वार्थ व काम छोड़कर इस धर्म का पालन करता है वही सच्चा मानव है।