एक लफ्ज प्रेम का .............

'MANISH'

yaara naal bahara
धर्म हमें प्रेम, इंसानियत, समानता और भाईचारे का संदेश देता है। ईश्वर एक है और विभिन्न धर्म-पंथ उस तक पहुंचने के रास्ते हैं। एक भक्त के लिये उसका धर्म, अध्यात्म, ज्ञान सब कुछ प्रेम ही है। भक्त जानता है कि यह प्रेम सरल नहीं है, यह न तो खेत में पैदा हो सकता है और न ही हाट में मिलता है। प्रेम पाने के लिए इंसान को सबसे पहले अपने अहंकार को समाप्त करना ही कसौटी है।


जहां अहंकार खत्म होता है, वहीं से प्रेम शुरू होता है। आज की विषम परिस्थितियां केवल अहंकार के कारण ही खड़ी हैं। धर्म कोई भी क्यों न हो किन्तु एक सच्चा भक्त यही कहेगा कि- अहंकार छोड़ो और प्रेम से गले लग जाओ। धर्म के नाम पर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करने वालों को प्रेम के मार्ग का पथिक यही कहेगा कि राम और रहीम एक ही हैं। जब हमें यह ज्ञान हो जाए कि इस संसार में एक ही ईश्वर सर्वव्याप्त है तो झगड़ा ही मिट जाएगा।


जब हम सबमें ईश्वर को ही देखेंगे तो फिर अहम् की भावना मिट जाएगी। एक भक्क्त इसी भावना को इस तरह व्यक्त करते हैं- जब मैं था तब हरि नहिं, अब हरि है मैं नहिं। कहने का मतलब यह कि जब 'मैं' का भाव था तब तक हृदय में ईश्वर की अनुभूति नहीं हुई, जब हृदय में ईश्वर की अनुभूति हुई तो 'मैं' का भाव समाप्त हो गया। अब तो हर तरफ केवल ईश्वर ही दिखाई देता है।
 
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