क्यों भाई-बहन मनाएं रक्षाबंधन पर्व?

रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक, व्यावहारिक और सामाजिक महत्व है। किंतु वास्तव में भाई द्वारा बहन के हाथों से रक्षाबंधन बंधवाने के अध्यात्मिक लाभ भी मिलते हैं, जो शरीर और जीवन पर गहरा असर करते हैं। जानते हैं आखिर क्या है यह अध्यात्मिक लाभ -
भारतीय संस्कृति में स्त्री को शक्ति रुप माना जाता है। शिव भक्ति के माह सावन की अंतिम तिथि पूर्णिमा पर शक्ति पूर्ण रुप में जाग्रत होती है। इसलिए जब बहन अपने भाई को राखी बांधती है तो उसके स्त्री रुप में रहने वाली शक्ति का प्रभाव भाई में भी अदृश्य रुप में पहुंचता है, जो उसके जीवन में आने वाले संकटों में रक्षक होती है।- बहन द्वारा राखी बांधने के बाद भाई की आरती के लिए जलाए गया दीपक ऊर्जा का रुप होता है। इससे अग्रि तत्व सक्रिय होता है। बहन जब भाई की आरती करती है तो दीपक से निकलने वाली ऊर्जा से भाई को स्वस्थ और दीर्घायु बनाती है। - धार्मिक मान्यता है कि सावन की पूर्णिमा पर श्री गणेश और माता सरस्वती पृथ्वीलोक में आते हैं। इसलिए रक्षाबंधन के दिन जब भाई-बहन एक-दूसरे की रक्षा और सुख की कामना करते हैं तो उनको श्री गणेश और माता सरस्वती से सफलता और सुख का आशीर्वाद मिलता है।

सावन माह की पूर्णिमा(24 अगस्त)के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन पर्व भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। बहन भी अपने भाई के सुखी और सुरक्षित जीवन की कामना से उसके हाथों पर रक्षासूत्र बांधती है। वहीं भाई भी अपनी बहन के जीवन और सम्मान की रक्षा करने का वचन देता है।
भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्तों की यह पावन परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। इसका उदाहरण हिन्दू धर्म ग्रंथ महाभारत में भी मिलता है। जानते हैं महाभारत के उस प्रसंग को -
महाकाव्य महाभारत के अनुसार चेदि राज्य का राजा शिशुपाल था। वह भगवान श्रीकृष्ण का बुआ का पुत्र था। उसके जन्म के समय हुई आकाशवाणी के अनुसार उसकी श्रीकृष्ण के हाथों मृत्यु होनी थी। किंतु श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को वचन दिया था कि वह उसके सौ अपराध माफ करेंगे। किंतु उसके बाद किया गया कोई भी अपराध शिशुपाल की मृत्यु का कारण बनेगा।
एक बार पांण्डवों ने यज्ञ किया। जहां श्रीकृष्ण और शिशुपाल भी आए। किंतु पाण्डवों के द्वारा श्रीकृष्ण की सबसे पहले पूजा करना शिशुपाल सहन न कर सका। उसने श्रीकृष्ण को अपशब्द कहना शुरु कर दिया और युद्ध की चुनौती दी। तब बुआ को दिए वचन के अनुसार एक सौ अपराध माफ कर चुके श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का सिर सुदर्शन चक्र से काट दिया।
माना जाता है कि सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध करने से श्रीकृष्ण की अंगुली घायल हो गई। उस समय वहां मौजूद द्रौपदी ने अपने शरीर पर पहने वस्त्र से एक टुकड़ा फाड़ा और श्री कृष्ण की अंगुली पर लगी चोट पर बांधा। श्रीकृष्ण, द्रौपदी के इस स्नेह से भाव विभोर हो गए। उन्होंने द्रौपदी को रक्षा का वचन दिया। यह दिन सावन पूर्णिमा का ही था।
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के इसी स्नेह को तब मान दिया, जब शकुनि के कपट से पाण्डवों की जुंए में हार के बाद दु:शासन ने द्रौपदी का चीरहरण शुरु किया। किंतु भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के शरीर पर पहने वस्त्र को इतना बढ़ाया कि दु:शासन उसका दूसरा छोर न मिलने से पस्त हो गया।
इस तरह भगवान श्री कृष्ण न केवल द्रौपदी की लाज बचाई। बल्कि जगत को भी स्त्री की रक्षा और सम्मान का संदेश दिया। इससे ही रक्षाबंधन के पर्व पर भाई-बहन के रिश्तों में एक दूसरे की रक्षा और मदद की भावना के संकल्प की शुरुआत हुई।
 
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