lakshya bejuba
bejubaa
अब है टूटा सा दिल ख़ुद से बेज़ार सा
इस हवेली में लगता था दरबार सा
इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
मैं भी तलवार सा तू भी तलवार सा
खूबसूरत सी पाँवों में ज़ंजीर हो
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ़्तार सा
शाम तक कितने हाथों से गुज़रूँगा मैं
चायख़ानों में उर्दू के अख़बार सा
मैं फ़रिश्तों की सोहबत के लायक़ नहीं
हमसफ़र कोई होता गुनहगार सा
बात क्या है के मशहूर लोगों के घर
मौत का सोग होता है तैहवार सा
ज़ीना ज़ीना उतरता हुआ आईना
उसका लहज़ा अनोखा खनकदार सा
इस हवेली में लगता था दरबार सा
इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
मैं भी तलवार सा तू भी तलवार सा
खूबसूरत सी पाँवों में ज़ंजीर हो
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ़्तार सा
शाम तक कितने हाथों से गुज़रूँगा मैं
चायख़ानों में उर्दू के अख़बार सा
मैं फ़रिश्तों की सोहबत के लायक़ नहीं
हमसफ़र कोई होता गुनहगार सा
बात क्या है के मशहूर लोगों के घर
मौत का सोग होता है तैहवार सा
ज़ीना ज़ीना उतरता हुआ आईना
उसका लहज़ा अनोखा खनकदार सा