Saagar Kabhi Doobta Nahi - Lalit Kumar

tomarnidhi

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आज सागर का दिल बेचैन है
उसके सीने पर तैरती
बेढब कारोबारी नौकाओं और
प्यार की हर सुंदर कश्ती की
सांसे… अटक गई हैं
आज सागर का दिल बेचैन है
आज ना जाने क्या होगा


अपार का विस्तार जैसे
खुद में ही सिमट गया है
सब कुछ, कितना ख़ामोश
कितना चुप-सा हो गया है
आज ना जाने क्या होगा


हवाओं की हरहराहट ने
लहरों के घोर गर्जन ने
अचानक पनाह ले ली है
डरा देने वाले सन्नाटे में
आज ना जाने क्या होगा


हर कश्ती, हर मछली, हर शहर
जवां होने को तैयार हर लहर
हर थमी हुई, भुला दी गई सांस
दुगनी गति से धड़कता हर दिल
बस यही सोच रहा है
आज ना जाने क्या होगा


चुप्पी साधे, हाथों को बांधे
सिर झुकाए खड़ी कायनात को
एक सहमी-सी आंशका है
इस ख़ामोशी के गर्भ से
ऐसे तूफ़ान के आने की
जिसके बाद कुछ नहीं रहेगा


क्या सागर आखिरकार
अपना ज़ब्त खो देगा?
अपनी सीमाएँ तोड़ देगा?
हाँ, शायद तोड़ ही देगा
आखिर ज़ब्त की भी तो
एक सीमा होती ही है
पर शायद ऐसा ना भी हो
क्योंकि सागर ने खुद ही तो
अपने को सीमाबद्ध किया है
वरना भला प्रकृति में कौन है
जो अपार को बांध ले?


आज सागर का दिल बेचैन है
आज ना जाने क्या होगा…
कयास सभी लगा रहे हैं
और सब यह भी जानते हैं
कि कुछ नहीं होने वाला
उसका ये नया दुख भी
असीम गहराईयों में दफ़्न हो जाएगा
इस बार भी सागर
एक गहरी सांस लेकर रह जाएगा


देखो, सागर कभी रोता नहीं
वो दर्द-बयानी नहीं करता
दुख में घुटेगा पर सीमाबद्ध रहेगा
यही तो उसका तुमसे वायदा है


उसका वायदा कभी टूटता नहीं
उसका धीरज कभी छूटता नहीं
वो सागर है
सागर कभी डूबता नहीं




ललित कुमार द्वारा लिखित
 
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