Pardes mein Holi

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अबकी हॊली परदेश में ।
- आलोक त्रिपाठी
(परदेश में होली !)
गाँव भी छूटे, देस भी छूटा,​
छूट गये हैं ताल तलैया,​
होली पीछे छूट गयी,​
आगे बढ़ने की रेस में ,​
अबकी हॊली परदेश में ।
कुर्ता बंडी और पैजामा,
पहने तो अजनबी लगें,
होली में भी घूम रहे हैं,
जेंटिल्मैन के भेष में,
अबकी हॊली परदेश में ।
मिलना जुलना गले लगाना,​
किस दुनिया की बातें हैं,​
अब तो होली सिमट गई है,​
ई-मेल के संदेश में,​
अबकी हॊली परदेश में ।
कहाँ मिठाई, कहाँ कचौडी़,​
गुझिया और नमकीन कहाँ,​
हम तो लज्ज़त ढूँढ रहे हैं,​
पिज्जा बर्गर के बेस में,​
अबकी हॊली परदेश में ।
नया समय है नयी मंजिलें​
जीवन का है रंग नया​
पर होली बेगानी हो गयी,​
बेगाने परिवेश में,​
अबकी हॊली परदेश में ।
 
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