my पोएम- अमराई चुप है

Aparna shrijita

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अमराई चुप हैं.
कोयल कूक-कूक कर टोंच रही हैं.
ऋतुराज के द्वार के उस पार ,
दस्तक पर दस्तक
कूक पर कूक
हा-हा हूल-हूल , हूक पर हूक.
झूठ-झूठ , छल-छल - मेरी डालियों पर किसका आरक्षण!!!
दमन-शमन , भूख-भूख.
स्खलित न हो रहा, बर्फ-बर्फ मौन-मौन.
असमान अधिकार हैं,शोषित हैं कौन-कौन.
ऋतुराज के द्वार के उस पार -
दग्ध -दग्ध ,दहन-दहन.
टेसू अरण्य के कर रहे वहन-वहन ,
अग्नि के दाह का धूँ-धूँ , वरण-वरण .
जल गए पलाश सब , पिघला न वसंत अब .
ऋतुराज तुमने चुन लिए फूल-कलियों के चमन .
शूल लग गए यहाँ , पाप हो गए अमन.
और कोकिल!!!
तू नोंच रही -
शूल-शूल,हूल-हूल.
अमराई मौन सुन रही -
कोयल की कूक-कूक
शूल दिल में गड़ गए , शेष थी अब हूक-हूक!!!!!!!!!!!!!!!!!!!:o
 
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