सब्जिया कर रही बाते -haas kavita

सब्जिया कर रही बाते

एक बार सब्जी मंडी मॅ देखा एक कमाल
सब्ज़िया कर रही थी बाते बाहो मैं बाहे डाल
आल् बोला टमाटर से नही तेरी कोई मीसाल
चिकनी सुंदर तवचा तुम्हारी रंग भी है लाल-लाल
टमाटर ने नाक सिकोडी बोली ओ मिट्टी के लाल
पहले जा के देख आईना फिर मुझ पे डोरे डाल
आल् ने चुटकी ली बोला क्या है अदा तुम्हारी
हर साबजी का स्वाद बड़ाती आब मेरी है बारी
कोई मनचला हम दोनो को ले अपने घर को जाएगा
मुझको धोकर तुमसे मिलाकर सब्जी कोई बनाएगा
एक बर्तन मे तुम्हारे संग खूब करूँगा 'रोमॅन्स'
यहा उछलकर व हा कूदकर करेंगे फिल्मी 'डॅन्स'

बगल मैं बैठा करेला खुजली कर हो रहा था तंग
भिंडी बोली अरे करेले ये कैसी है जंग
बोला करेला अरे बहना मेरा तो कब का उठा जनाज़ा
मुझे सुखाकर दवा मिलाई इस लिए दिखता हू ताज़ा
मुझ पर जो कुछ है बीती मे तो झेल जाऊँगा
पर क्या बीतेगी सेहत पर उसकी जिसकी थाली मैं आऊंगा

नेनुआ कर रहा कनाफूसी देख -देख कर लोकी
हम जॅहा के तहा रह गये पर इसके किस्मत चमकी
जब से बाबा रामदेव बने है इसके ब्रांड अम्बस्ड़र
इसके सामने खड़े होने से भी हमे लगे है डर
जब भी कोई बुजुर्ग आदमी हमारी तरफ है आता
हाथ बढ़ा कर इसे उठता पोते सा इसे खिलता
इसकी कीमत कुछ भी बोलो झट से नोट थमता
हमे लेकर अहसान जताता पैसे भी कम कराता

पायज़ रो रहा फफक-फफक कर अपनी छाती पीट
कहा कुछ रिसवतखोरो ने मुझे किया है चीट


मुझे निकाला डिब्बो मे डाला बाहर किया एक्सपोर्ट
अपने घर के लोग तरसते पर ये कमाए नोट
यही नही ख़तम होता मुझ पर आतायचार
मुझे लेकर करे राजनीति बदल देते सरकार
वो दिन दूर नही जब मैं पूरी तरह मिट जाऊँगा
मेरा पूतला लगेगा नूकड पे मैं सहीद कहलाऊंगा

बगॅन बोला एक समय था जब हर कोई यहा था आता
चंद नोट दे थॅला भरता ख़ुसी-ख़ुसी घर जाता
आज महँगाई का डंडा ऐसा हवा मे है लहराया
आम आदमी सब्जी भूला मन उसका घबराया
सब्जियो का दाम जानकार उसका निकले पसीना
चार की जगह दो सब्जियो मे उसने सीखा जीना
मुझे भी लेकर बड़ी सान से अपने घर को जाते
बड़े चाओ से मुझे बनाते फिर मिल- बाट के खाते

ह रे रंग की टोकरी मे नारंगी हो रही थी खुस
मनही मन मुस्कुराती सब को देते 'स्वीट लुक'
सॅब बोला अरे आनर इसका क्यो भागे है मीटर
लगता है इस्पे भी छा गया है कोई 'फील गुड फॅक्टर'
नही पता इसे सायद की कभी ऐसा हो जाएगा
गुड निकलकर दूर भागे केवल फील रह जाएगा
फील-फील करता ये घूमे यहा वाहा चिल्लाएगा
गुड की तलाश मैं फिर खेल नया दिखलाएगा

सब्जिया की बाते सुनकर मे तो रह गया दंग
हम ही नही लड़ते एक दूजे से इन मे भी छिड़ी है जंग
ये कैसा समय आगया सोचे है 'राजीव'
आपस की लड़ाई मे पिसता जा रहा हर जीव
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तव
मेडिकल कॉलेज हल्द्वन्नी
नैनीताल
 
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