लाश पे राजनीति -ek kadwa saach(Kavita)

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सड़क किनारे बैठा कोई सब को देख ,हो रहा भयभीत
देख के उसको कोई चकित था, कोई था आक्रोशित

कुछ भ्रमित था कुछ चिंतित दुनिया से बेख़बर
लोगो की तीखी प्रतिकिरिया का भी नही था कोई असर

अपनी ही दुनिया मैं इस तरह से था वो लींन
लगता था उसका सब कुछ गया था छिन

ना कोई सीकायत ना किसी से था कोई गीला
एक अजनबी सी मुस्कान देता जिसे भी मिला

मैला कुचला कुछ अजीब सी थी उसकी हरकत
उसकी सयद नही थी किसी को भी ज़रूरत

ना कोई सगा ना कोई संबंधी ना कोई रिस्त्ेदार
एक-एक दिन काट कर,कररहा था मौत का इंतजार

एक दिन सड़क पे लगा हुआ था मजमा
शैकड़ो की तादाद मैं लोग थे जमा

कुछ लोग ज़ोर-ज़ोर से लगा रहे थे नारे
इंसाफ़ की गूहर लगा जोश मैं थे सारे

आज सांत पड़ा था चहेरे मैं नही थे कोई भावो
ना जाने आज उसे देख लोगो मैं क्यो था ताओ

मालूम हुआ की नेता जी की गाड़ी ने था ठोका
विपछी पार्टी को सरकार को घेरेने का मिल गया था मोका

आज जनता पर नाइंसाफी का लगा रहे थे इल्ज़ाम
बीच सड़क पर रख लास, लगा दिया था जाम


फिर कुछ दौर चले वार्ता के और मामला हुआ था शांत
कहा गिरने से चोट लगी और हो गया देहांत

खेल ख़तम हुआ मनोरंजन कर लोगो ने किया पलायन
उसकी लावारिस लास को ले गयी सरकारी वाहान

इस तरह एक बार फिर आमानवता थी जीती
बाज ना आए लोग लास पे भी कर गये राजनीति


डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
 
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