हुमकती पवन

Saini Sa'aB

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हुमकती पवन

फुनगी पर बैठी हुई कर रही मुजरा,
बाँट रही गंध मधुर गूँथ रही गजरा,
बाँसवन में हुमकती पवन।

वातायन-वातायन
जाती है, आती है,
झूम-झूम गाती है
आल्*हा औ' रामायन,
तुलसी के पौधे से जी-भर है बतियाती,
पुष्*प-कलिका-सी मृदु और कभी इस्पाती,
शकुनिका-सी फुदकती पवन।

हिमगिरि पर हिमगंधा
हिमकण बरसाती है,
सिहरन उमगाती है,
गा-गा कर मधुछंदा,
अंतर-अतलांत में उतराती-डूबती,
बजती हुई मांदल की थाप पर झूमती,
मेनका-सी ठुमकती पवन।

घर-आँगन चूल्हे में
लगती है अपनो-सी
धूप-छाँव सपनों-सी
सुख-दु:ख के झूले में,
मैके को छोड़ घर जाती हुई बेटी-सी,
हुई कभी अभिनंदित और कभी हेठी-सी,
हिलकी भर सुबकती पवन।
 
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