हाथ ऊपर को उठाए

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
हाथ ऊपर को उठाए
माँगते सौगात
निश्चल,
ताड़ों की क्या बात!

गहन ध्यान में लीन
हवा में
धीरे-धीरे हिलते
लंबे लंबे रेशे बिलकुल
जटा जूट से मिलते
निपट पुराना वल्कल पहने
संत पुरातन कोई न गहने

नभ तक ऊपर उठे हुए हैं
धरती के अभिजात
निश्चल,
ताड़ों की क्या बात!

हरसिंगार से श्वेत
रात भर
धीरे धीरे झरते
वसुधा की श्यामल अलकों में
मोती चुनकर भरते
मंत्र सरीखे सर सर बजते
नवस्पंदन से नित सजते

मरुभूमि पर रखे हुए है
हरियाली का हाथ
निश्चल,
ताड़ों की क्या बात!
 
Top