हमसफ़र कोई होता गुनहगार सा

~¤Akash¤~

Prime VIP
अब है टूटा सा दिल खुद से बेजार सा
इस हवेली मे लगता था दरबार सा

इस तरह साथ निभना है दुशवार सा
मे भी तलवार सा तू भी तलवार सा

खूबसूरत सी पावों मे जंजीर हो
घर मे बैठा रहू मैं गिरफ्तार सा

शाम तक कितने हाथों से गुजरुंगा मैं
चाय खाने मे उर्दू के अखबार सा

मैं फरिश्तो की सोहबत के लायक नहीं
हमसफ़र कोई होता गुनहगार सा
 
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