स्तब्ध हैं कोयल कि उनके स्वर

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
स्तब्ध हैं कोयल कि उनके स्वर
जन्मना कलरव नहीं होंगे।
वक्त अपना या पराया हो
शब्द ये उत्सव नहीं होंगे।

गले लिपटा अधमरा यह साँप
नाम जिस पर है लिखा गणतंत्र
ढो सकेगा कब तलक यह देश
जबकि सब हैं सर्वतंत्र स्वतंत्र

इस अवध के भाग्य में राजा
अब कभी राघव नहीं होंगे।

यह महाभारत अजब-सा है
कौरवों से लड़ रहें कौरव
द्रौपदी की खुली वेणी की
छाँह में छिप सो रहे पांडव

ब्रज वही है, द्वारका भी है
किंतु अब केशव नहीं होंगे।

जीतकर हारा हुआ यह देश
माँगता ले हाथ तंबूरा
सुनो जनमेजय, तुम्हारा यज्ञ
नाग का शायद न हो पूरा

कोख में फिर धरा-पुत्री की
क्या कभी कुश-लव नहीं होंगे?
 
Top