सोच रहा है दिन

Saini Sa'aB

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सोच रहा है दिन

सोच रहा है दिन

आँखों पर ओढ़ कर नींद
सो रही है रात : दिन के इन्तज़ार में

सोच रहा है दिन
अगर नहीं पहुँचा वक्त से
बेहोश रहेगी आरती और अज़ान
रह-रहकर धड़कता रहेगा मुर्गे का दिल
कोलाहल को तरसेगा वक्त

सोच रहा है दिन
अलावों में घूमती रहेगी आग
चूल्हे बदलते रहेंगे करवटें
ताने देती रहेगी चाय

सोच रहा है दिन
दुकानों के जिस्म में कुलबुलाती

रहेंगी चीज़ें
पैरों को तरसती रहेंगी सड़कें
लैम्पपोस्ट में पथरा जाएँगी

रोशनी की आँखें

रोशनी का ख़्याल आते ही
भाग लिया दिन
रात की आँखों में पिघलने लगी नींद
बर्फ़ की तरह।
 
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