सलाम

[JUGRAJ SINGH]

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दुनिया से नज़रें अब चुराकार ,
इश्क़ करने हम चले ,
यारों की महफ़िल छोड कर ,
तन्हा यूँ मरने हम चले ,
उसकी रजा में जो मज़ा ,
वो ब्याँ करने हम चले ,
उसकी अँखों के साहिल में ,
भर रात तरने हम चले ॥

नींदें तो आँखों में ही हैं ,
पर सपने उन्के हो गए ,
लम्हें भी उनसे माँगे हैं ,
जो अपने थे उन्के हो गए ,
ये दिल भी तो नादान है ,
उनको कहे हम सो ग​ए ,
कैसे कहें हम तारों के संग ,
बस चाँदनी में खो गए ॥

* रोहित बांसल *​​
 
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