समन्दर की ख़ामोश गहराइयों को किनारे क्या &#236

~¤Akash¤~

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समन्दर की ख़ामोश गहराइयों को किनारे क्या समझेंगे..
तूफानों के भंवर को डूबती कश्तियाँ क्या समझेंगी..

जो हो सामना यादों का तन्हाइयों से कभी..
उसे आरजूओ के बढते कदम क्या समझेंगे..

ना कर कभी साहिल में मिटने की तम्मना..
तेरा दर्द ये हवाएं,ये बहती नदियाँ क्या समझेंगी..

ठहरती नहीं है कभी ज़िन्दगी एक आईने पर..
ये टूटते अक्सों का नज़ारा क्या समझेंगी..

दामन में खोजती फिरती है खुशियाँ ही खुशियाँ..
ये रूकती हुई उम्र का दराज़ क्या समझेंगी..

हसरतें और अह्सांसों का सामना होता नहीं कभी..
वो ख्वाबों से लिपटी तकदीर का मंज़र क्या समझेंगी..

शख्सियतें आती-जाती रहती है ज़िन्दगी के पहलु में..
ये सवाल-जवाब के ज़ज्बातों की जुस्तजू क्या समझेंगी..!
 
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