वो नज़र

[JUGRAJ SINGH]

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उस नज़र की मैं क्या बात करुँ ,
मुझे देख के जो झुक जाती है ,
वो धड़कन​, वो आहट कदमों की ,
तेरे आने से जो रुक जाती है ॥

कहीं दूर नज़र को फ़ेंकना ,
तेरा धूप का वो सेकना ,
अच्छा सा लगने लगा मुझे ,
चोरी से तेरा वो देखना ॥

मेरे सामने ही बैठ कर ,
वो खिलखिला ह्ँसना तेरा ,
वो एक ही दिन मे कभी ,
कई बार का जचना तेरा ॥

ना बात तुझसे हो सकी ,
ना आँख मेरी रो सकी ,
तेरे प्यार की गहराई में ,
हसरतें ना मेरी खो सकी ॥

ना है गिला तुझसे कोई ,
ना है कोई शिकायत सनम ,
बस सामने तुम आते रहो ,
करना इतनी हिमायत सनम ॥

* रोहित बांसल *
 
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