Saini Sa'aB
K00l$@!n!
लोकतंत्र का गान
नित नये नारे, नए उद्घोष, नव आकांक्षाएँ
हो नही सकती कभी पूरी
ये तुमसे क्या छिपाएँ।
देश का इतना बड़ा, कानून है
भूख पर जिसका असर, होता नहीं
मूल्य बदले दलदलों ने भी
कांति जैसे जलजलों का
अब असर होगा नहीं
और नुस्खे आजमाएँ।
ये तुमसे क्या छिपाएँ।
अरगनी खाली, तबेले बुझ रहे हैं
छातियों में उग आए स्वप्न
जंगलों से जल रहे है
तानकर ही मुट्ठियों को क्या करेगें
ध्वज पताकाएँ उठाने मै मरेंगे
तालियाँ भी इस हथेली से नहीं बजती
ढोल कैसे बजाएँ।
तुमसे क्या छिपाएँ।
नित नये नारे, नए उद्घोष, नव आकांक्षाएँ
हो नही सकती कभी पूरी
ये तुमसे क्या छिपाएँ।
देश का इतना बड़ा, कानून है
भूख पर जिसका असर, होता नहीं
मूल्य बदले दलदलों ने भी
कांति जैसे जलजलों का
अब असर होगा नहीं
और नुस्खे आजमाएँ।
ये तुमसे क्या छिपाएँ।
अरगनी खाली, तबेले बुझ रहे हैं
छातियों में उग आए स्वप्न
जंगलों से जल रहे है
तानकर ही मुट्ठियों को क्या करेगें
ध्वज पताकाएँ उठाने मै मरेंगे
तालियाँ भी इस हथेली से नहीं बजती
ढोल कैसे बजाएँ।
तुमसे क्या छिपाएँ।