लाख चाहें

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
लाख चाहें

लाख चाहें फिर भी मिलता सब नहीं है
जुस्तजू पर आदमी को कब नहीं है

हम अभी तक नाते रिश्तों में बंधे हैं
वो नहीं मिलते कि अब मतलब नहीं है

ढूँढ़ता है दर बदर क्यों मारा मारा
प्यार ही तो ज़िन्दगी में सब नहीं है

हमने अपने राज़ क्या बताएँ उनको
दोस्ती जो थी कभी वो अब नहीं है

तेरे जैसे इस जहाँ में 'दोस्त' कितने
जो कहे उनका कोई मज़हब नहीं है
 
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