लड़कियाँ

Saini Sa'aB

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लड़कियाँ
रोज़ पीठ में चुभन दृष्टि की
लड़की भोगे आते-आते।
वह कोई दैनिक है उसकी पीठ
एक पन्ना है जिस पर
खोज रही कस्बाई आँखें
दुराचार की ख़बरें दिन भर।
आँख चुरा कर पढ़ लेते हैं
झूठी ख़बरें रिश्ते, नाते।
रस्ते भर बबूल के वन है
काँटे क्या, चुभती है छाया।
सहती रहीं बेटियाँ कब से
कोई नहीं काटने आया।
आँधी में उड़ रहे दुपट्टे
उलट रहे पानी में छाते।
पहले मन में फिर हाथों में
उगने लगे क्रोध के खंजर।
निकल रहीं लड़कियाँ घरों से
संकल्पों के कवच ओढ़ कर।
आग क्रोध की और भड़कती
जितना पानी डाल बुझाते।
 
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