रोज नया चेहरा पढता हूँ

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
रोज नया चेहरा पढता हूँ
इधर उधर सब देख समझकर
मन बेमन आगे बढता हूँ।

कुछ अपने कुछ बेगाने हैं
कुछ परिचित कुछ अनजाने हैं
कुछ झूठे कुछ बिल्कुल सच्चे
कुछ बूढे जवान कुछ बच्चे
इन्हे भागता हुआ देखकर
अनुभव की सीढी चढता हूँ।

कुछ तीखे कुछ मीठे चेहरे
कुछ बडबोले मन के गहरे
कहीं जानवर कहीं देवता
कहाँ जा रहे किसे क्या पता
जो पूरा मनुष्य सा दीखे
माटी का पुतला गढता हूँ।

कुछ वर्दी कुछ दाढी वाले
कुछ टाई कुछ कुर्ते वाले
कुछ बूढी तो कुछ बालाएँ
पंखकटी उडती महिलाएँ
मैं आँखों देखी तस्बीरें
मन के शीशे में मढता हूँ।
 
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