रामजी मालिक

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
रामजी मालिक

हो रहे
शब्दार्थ बेमानी
प्रहलियों के रामजी मालिक।

उग रहे जलकुंभियों के जूथ
ढँक लिया शैवाल ने सरवर,
मकड़ियों ने बुन लिये जाले
फँस रहे निर्दोष क्षर-अक्षर,
सड़ रहा है
ताल का पानी
मछलियों के रामजी मालिक।

देह फूलों की हुई घायल
वक्*त के नाखून तीखे हैं,
इस सदी का है करिश्मा यह
बाग में निष्प्राण चीखें हैं,
हो रहा
बदरंग-रंग धानी
ति*तलियों के रामजी मालिक।

क्षितिज पर तूफान के लक्षण
गगन ने आँखें तरेरी हैं,
रौंदने भू पर रुपा जीवन
छेड़ता वह युद्धभेरी है,
बिजलियों ने
जंग है ठानी
बदलियों के रामजी मालिक।
 
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