रात

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
रात
ढरक गया नेह
नील ढालों पर
शिखरों की पीर व्योम
पंखिनी
पावों में
टूटता रहा सूरज
कांधे चुभती रही
मयंकिनी,

भृंग, सिंह,
आंख पांख की बातें
कुतुहल कुछ स्नेह
कुछ संकोच भी,
पीड़ों पर
रीछ पांज के निशान
मन में कुछ याद के खरोंच भी
विजनीली हवा
कण्व-कन्या सी
पातों पर प्रेमाक्षर अंकिनी,
थन भरे
बथान से अलग बंधे
बछड़ा
खुल जाने की शंका,
ग्वालिन की बेटी
की पीर नई
नैन उनींदे उमर प्रियंका
कड़ुए तेल का
दिया लेकर
गोशाला झांकती सशंकिनी।​
 
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