राजा के पोखर में

Saini Sa'aB

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राजा के पोखर में
ऊपर-ऊपर लाल मछलियाँ
नीचे ग्राह बसे।
राजा के पोखर में है पानी की थाह किसे।
जलकर राख हुईं पद्मिनियाँ
दिखा दिया जौहर
काश कि वे भी डट जातीं
लक्ष्मीबाई बनकर
लहूलुहान पड़ी जनता की
है परवाह किसे।
कजरी-वजरी चैता-वैता
सब कुछ बिसराए
शोर करो इतना कि
कान के पर्दे फट जाएँ
गेहूँ के संग-संग बेचारी
घुन भी रोज़ पिसे।
सूखें कभी जेठ में
सावन में कुछ भीजें भी
बड़ी ज़रूरी हैं ये
छोटी-छोटी चीज़ें भी
जाने किस दल में है
सारे नरनाह फँसे।
 
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