ये घर बनानेवाले

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
ये घर बनानेवाले
बेघर सदा रहे हैं
ये घर बनानेवाले

तारों की छत खुली है
धरती बनी बिछौना
इस बेरहम शहर में
मस्ती में डूब सोना

रातों में गा रहे हैं
दीया जलानेवाले

शिख नभ को छू रहे हैं
सुख से हैं जो अघाए
किसका बहा पसीना
कभी जान ये न पाए

लू के थपेड़े खाकर
छैंया दिलाने वाले

वे आज हैं यहाँ पर -
कहीं और कल ठिकाना
साँसें बची है जब तक
गैरों के घर बसाना

सोएँगे नींद गहरी
न जाग पाने वाले
 
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