यूँ देर से घर लौट के आना नहीं अच्छा

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
यूँ देर से घर लौट के आना नहीं अच्छा
कहते हैं सभी लोग ज़माना नहीं अच्छा

हर एक को ग़म अपना सुनाना नहीं अच्छा
तन्हाई में यूँ बैठ के गाना नहीं अच्छा

अश्क़ों में ग़में-दिल की तपिश हो तो बुरा क्या
पानी में मगर आग लगाना नहीं अच्छा

दीवारों के कान हमने सुने आँखें भी होंगी
अँगनाई में दीवार उठाना नहीं अच्छा

तय कर लेंगे इक रोज़ वो खुद आपसी झगड़ा
हर बात में यूँ टाँग अड़ाना नहीं अच्छा

अपना ही गला काट ले इक रोज़ तो क्या हो
अंधे को यूँ तलवार थमाना नहीं अच्छा

बदली भी घिरी और अभी रात है बाक़ी
इस आखि़री शम्मा को बुझाना नहीं अच्छा​
 
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