मैं घर लौटा।

Saini Sa'aB

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मैं घर लौटा।
आकर बैठा था आँगन में
टूटी खटिया पेड़ नीम का
बिटिया आई दौड़ी-दौड़ी
दुबकी गोदी में वह आकर
पत्नी आई सहज भाव से
और छुआ मुझको धीरे-से।
बरस पड़ी जैसे शीतलता
और चाँदनी भीनी-भीनी
मेरे छोटे-से आँगन में

मैं मूरख था अब तक भटका
बाहर-बाहर
झाँक न पाया था भीतर मैं
पावन मंदिर तीर्थ जहाँ था
और जहाँ थे ऊँचे पर्वत
शीतल-शीतल
और भावना की नदियाँ थीं
कल कल बहतीं छलछल बहतीं
झोंके खुशबू के भरे हुए
बात-बात में
जुड़े हुए थे हम सब ऐसे
नाखून जुड़ा हो साथ माँस
के युग-युग से।
 
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