Saini Sa'aB
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मूँगिया हथेली
भरी-भरी मूँगिया हथेली पर
लिखने दो एक शाम और।
काँप कर ठहरने दो
भरे हुए ताल
इंद्र धनुष को
बन जाने दो रूमाल
साँसों तक आने दो
आमों के बौर।
झरने दो यह फैली
धूप की थकान
बांहों में कसने दो
याद के सिवान
कस्तूरी-आमंत्रण जड़े
ठौर-ठौर।
भरी-भरी मूँगिया हथेली पर
लिखने दो एक शाम और।
काँप कर ठहरने दो
भरे हुए ताल
इंद्र धनुष को
बन जाने दो रूमाल
साँसों तक आने दो
आमों के बौर।
झरने दो यह फैली
धूप की थकान
बांहों में कसने दो
याद के सिवान
कस्तूरी-आमंत्रण जड़े
ठौर-ठौर।