मिर्ज़ा गालिब

दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है,

हम को उन से वफा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते, वफा क्या है,

हम हैं मुश्ताक और वो बेज़ार,
या इलाही ये माजरा क्या है,

जब कि तुम बिन नहीं कोई मोजूद,
फिर ये हँगामा ऐ खुदा क्या है।
 
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