मदारी की लड़की

Saini Sa'aB

K00l$@!n!

मदारी की लड़की
सपनों की किरचों पर
नाच रही लड़की।

अपने ही
झोंक रहे चूल्हे की आग में
रोटी पानी ही तो है इसके
भाग में
संबंधों के अलाव ताप
रही लड़की।

ड्योढी की
सीमाएँ लाँघ नही पायी है
आज भी मदारी से बहुत मार
खायी है
तने हुए तारों पर काँप
रही लड़की।

तुलसी के
चौरे पर आरती सजाये है
अपनी उलझी लट को फिर फिर
सुलझाये है
बचपन से रामायन बाँच
रही लड़की।
 
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