मज़रूह सुल्तानपुरी

हम हैं मता-ओ-कूचा-ए-बाज़ार की तरह,
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह,

वो तो कहीं हैं और मगर दिल के आस-पास,
उठती है कोई शै निगाह-ए-यार की तरह,

मज़रूह लिख रहे हैं वो अहले-वफा का नाम,
हम ही खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह,
 
Top