भोर

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
भोर

दूर खड़ी
बौनी घाटियों की
धुन्धवती मांग में
ढरक गया सिन्दूरी पानी

सालवनों की
खोई आकृतियाँ
उभर गई
दूब बनी चाँदी की खूटी
छहलाए तरुओं में
चहकन की
एक एक और शाख फूटी।
पंखों के पृष्ठों पर
फिर लिक्खी जाएगी
सुगना के खोज की कहानी,

कानों के कोर
हो गए ठंडे
होठों ने
वाष्प सने अक्षर कह डाले।
छानी पर
कांस के कटोरों में
आज पड़ गए होंगे पाले।
गंधों की पाती से
हीन पवन
राम राम कह गया जुबानी​
 
Top