Saini Sa'aB
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भाषा तो प्रवहित सलिला है
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर, अवगाहो या करो आचमन
.
जीव सभ्यता ने ध्वनियों को
जब पहचाना
चेतनता ने भाव प्रगट कर
जुड़ना जाना
भावों ने हरकर अभाव हर
सचमुच माना-
मिलने-जुलने से नव
रचना करना ठाना.
ध्वनि-अंकन हित अक्षर आये
शब्द बनाये, मानव ने नित कर नव चिंतन.
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन
.
सलिला की कल कल कल
सुनकर मन हर्षाया
साँय-साँय सुन पवन
झकोरों की उठ धाया
चमक दामिनी की जब देखी,
तब भय खाया,
संगी पा, अपनी-उसकी
कह-सुन हर्षाया.
हुआ अचंभित, विस्मित, चिंतित,
कभी प्रफुल्लित और कभी उन्मन अभिव्यंजन
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन
.
कितने पकडे, कितने छूटे
शब्द कहाँ-कब?
कितने सिरजे, कितने लूटे
भाव बता रब.
अपना कौन?, पराया
किसको कहो कहें अब?
आये-गए कहाँ से कितने
जो बोलें लब.
थाती, परिपाटी, परंपरा
कुछ भी बोलो पर पालो सबसे अपनापन.
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर, अवगाहो या करो आचमन
.
जीव सभ्यता ने ध्वनियों को
जब पहचाना
चेतनता ने भाव प्रगट कर
जुड़ना जाना
भावों ने हरकर अभाव हर
सचमुच माना-
मिलने-जुलने से नव
रचना करना ठाना.
ध्वनि-अंकन हित अक्षर आये
शब्द बनाये, मानव ने नित कर नव चिंतन.
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन
.
सलिला की कल कल कल
सुनकर मन हर्षाया
साँय-साँय सुन पवन
झकोरों की उठ धाया
चमक दामिनी की जब देखी,
तब भय खाया,
संगी पा, अपनी-उसकी
कह-सुन हर्षाया.
हुआ अचंभित, विस्मित, चिंतित,
कभी प्रफुल्लित और कभी उन्मन अभिव्यंजन
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन
.
कितने पकडे, कितने छूटे
शब्द कहाँ-कब?
कितने सिरजे, कितने लूटे
भाव बता रब.
अपना कौन?, पराया
किसको कहो कहें अब?
आये-गए कहाँ से कितने
जो बोलें लब.
थाती, परिपाटी, परंपरा
कुछ भी बोलो पर पालो सबसे अपनापन.
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन