बादल छँटे

Saini Sa'aB

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बादल छँटे
गई बरसातें
आई सुषमा की रानी
दिव्य दिवाली
दिये संजोती
गौरव की मुखरित वाणी
टपरे खिले
खिला घर-आँगन
लिपे पुते प्यारे-प्यारे
संस्कृतियों के
सदमतियों के
कलश भरे द्वारे-द्वारे
एक दिया है
जो जलता है
बुझ जाता है
मिले-जुले
त्योहार हुआ
एक समा-सा बन जाता है
निशा भले हो
अमा भले हो
उस पर भी आलोक रहे
नेह भरा हो
लौ जाग्रत हो
क्यों कोई फिर शोक रहे
आओ मिलें
आज सब खिलें
दीपों का त्योहार मनाएँ
गोधन पूजें
लक्ष्मी पूजें
प्राण प्राण में प्यार बढ़ाएँ
 
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