बहुत दिनों से

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
बहुत दिनों से
बहुत दिनों से
गीत नही लिख पाया

राजनीति की उठापटक में
नेताओं की है हठधर्मी
कभी दलों की अदला बदली
कभी चुनाबोँ की सरगर्मी
किस पर लिखूँ लिखूँ ना किस पर
माथा पच्ची ना कर पाया

लूटपाट बाजार गरम है
तंत्र मौन होकर है बैठा
प्रजा पिस रही गलियारों में
राजा घूमे ऐठा ऐठा
किसकी सुनूँ,सुनूँ ना किसकी
तन मन घबराया चकराया

जिनके ओठों की सच शोभा
उनका टू जीना दूभर है
रोटी रोजी कलम है जिनकी
निर्वासन उनके सिर पर है
गीत गज़ल कविता चिल्लाती
आसमान को रास न आया​
 
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