बस कलम रह गई साथ

बस कलम रह गई साथ


चला गया जो भी आया था, बस कलम रह गई साथ।
किसी और का वो साया था, धुंधली-सी रह गई याद।​
गीत कभी गाए थे मैंने, भूल गई हूँ सुर और ताल
लफ़्ज़ नहीं छूटे मुझसे पर, देते रहे समय को मात।​
भाषाएँ सब अलग-अलग, सीखीं और फिर भूल गई,
पर जब जो भी जाना उसमें कलम चलाते रहे हाथ।​
छूट गए सब लोग पुराने, और नज़ारे जान से प्यारे
जब भी पर जो भी देखा, नज़्मों मे सब लिया बाँध।​
 
Utna hi upkaar samajh koi jitna saath nibha de,
janam-maran ka khel hai sapna, ye sapna bisra de,
koi na sang marey, man re tu kaahe na dheer dharey.
 
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