Saini Sa'aB
K00l$@!n!
बरखा आए
बरखा-आए
भीगे सारे
पर्वत-जंगल औ' बंजर भी
कई महीनों धूप तपे थे
जी-भर के अब नहा रहे हैं
घाटी में भी, देखो, कैसे
झरने-नाले उमग बहे हैं
हँसता कैसा
उधर शिवाला
टीलेवाला रब का दर भी
पेड़ों ने भी महक संजोई
भीगी माटी की सीने में
म्याऊं बिल्ली भी उत्पाती
छिपकर बैठी है जीने में
गाँव-गली में
कजरी गूँजे
पिकनिक होते महानगर में
जो पगडंडी राख हुई थी
हरी-भरी हो गई अचानक
उत्सव-पर्वों के घर-घर में
सुनो, बन रहे फिर से बानक
साँसों में
धुन है मल्हार की
गीत गा रहा अपना घर भी
बरखा-आए
भीगे सारे
पर्वत-जंगल औ' बंजर भी
कई महीनों धूप तपे थे
जी-भर के अब नहा रहे हैं
घाटी में भी, देखो, कैसे
झरने-नाले उमग बहे हैं
हँसता कैसा
उधर शिवाला
टीलेवाला रब का दर भी
पेड़ों ने भी महक संजोई
भीगी माटी की सीने में
म्याऊं बिल्ली भी उत्पाती
छिपकर बैठी है जीने में
गाँव-गली में
कजरी गूँजे
पिकनिक होते महानगर में
जो पगडंडी राख हुई थी
हरी-भरी हो गई अचानक
उत्सव-पर्वों के घर-घर में
सुनो, बन रहे फिर से बानक
साँसों में
धुन है मल्हार की
गीत गा रहा अपना घर भी