Saini Sa'aB
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फूल शाखों से
फूल शाख़ों से झर गये होते
जाने झर के किधर गये होते
जिस तरह उम्र को जिया हमने
आप होते तो मर गये होते
आइना हाथ में न मेरे है
देख के शक्ल डर गये होते
ऐसी जल्दी भी क्या थी जाने की
काम कुछ करके घर गये होते
याद आते सभी को सदियों तक
कुछ तो ऐसा भी कर गये होते
प्यास से दूब थरथराती है
लब पे शबनम ही धर गये होते
अब्र बरसे बग़ैर लौट गये
ज़ख्म झीलों के भर गये होते
फूल शाख़ों से झर गये होते
जाने झर के किधर गये होते
जिस तरह उम्र को जिया हमने
आप होते तो मर गये होते
आइना हाथ में न मेरे है
देख के शक्ल डर गये होते
ऐसी जल्दी भी क्या थी जाने की
काम कुछ करके घर गये होते
याद आते सभी को सदियों तक
कुछ तो ऐसा भी कर गये होते
प्यास से दूब थरथराती है
लब पे शबनम ही धर गये होते
अब्र बरसे बग़ैर लौट गये
ज़ख्म झीलों के भर गये होते