फागुनी दोहे

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
फागुनी दोहे
महुआ महका, मस्त हैं पनघट औ' चौपाल
बरगद बब्बा झूमते, पत्ते देते ताल
सिंदूरी जंगल हँसे, बौराया है आम
बौरा-गौरा साथ लख, काम हुआ बेकाम
पर्वत का मन झुलसता, तन तपकर अंगार
वसनहीन किंशुक सहे, पंच शरों की मार
गेहूँ स्वर्णाभित हुआ, कनक-कुंज खलिहान
पुष्पित-मुदित पलाश लख, लज्जित उषा-विहान
बाँसों पर हल्दी चढी, बँधा आम-सिर मौर
पंडित पीपल बाँचते, लगन पूछ लो और

तरुवर शाखा पात पर, नूतन नवल निखार
लाल गाल संध्या किए, दस दिश दिव्य बहार

प्रणय-पंथ का मान कर, आनंदित परमात्म
कंकर में शंकर हुए, प्रगट मुदित मन-आत्म
 
Top