Saini Sa'aB
K00l$@!n!
पुरवाई
वक्त को समझ
पछुआ के कहकहे न सुन
हरकारे भटक गए हैं
किस मौसम की तलाश में
खुशबू को इश्तहार सा
टाँक रहे हैं पलाश में
ऐसे में
आँख खुली रख
सपनों की चादरें न बुन
मधुमासी हर सिंगार पर
नजरें है मई जून की
आँधी है बात कर रही
फगुनाहट के सुकून की
मोती की
आब को बचा
चमकीली सीपियाँ न चुन
वक्त को समझ
पछुआ के कहकहे न सुन
हरकारे भटक गए हैं
किस मौसम की तलाश में
खुशबू को इश्तहार सा
टाँक रहे हैं पलाश में
ऐसे में
आँख खुली रख
सपनों की चादरें न बुन
मधुमासी हर सिंगार पर
नजरें है मई जून की
आँधी है बात कर रही
फगुनाहट के सुकून की
मोती की
आब को बचा
चमकीली सीपियाँ न चुन