Saini Sa'aB
K00l$@!n!
पर्वतों से दिन
पर्वतों से दिन बहुत छोटे लगे
सुबह
बुनने लग गई
आहट हवा की,
पिता के आशीष,
दर्पण-दीठि मां की
दुख कि जैसे तृन, बहुत छोटे लगे।
याद सिरहाने टिका कर
सो गया,
बांसुरी-सा मन
अचानक हो गया,
थके-हारे दिन बहुत छोटे लगे।
पर्वतों से दिन बहुत छोटे लगे
सुबह
बुनने लग गई
आहट हवा की,
पिता के आशीष,
दर्पण-दीठि मां की
दुख कि जैसे तृन, बहुत छोटे लगे।
याद सिरहाने टिका कर
सो गया,
बांसुरी-सा मन
अचानक हो गया,
थके-हारे दिन बहुत छोटे लगे।