Saini Sa'aB
K00l$@!n!
नदी नाव संजोग
नदी नावसंजोग भेंटना
तुम से आज हुआ।
पान-फूल
अँजुरि में लेकर मन में वृंदावन,
आँख जुड़ाए गैल तकें गलियारे
घर आँगन,
बाट पाहुने की जोहे ज्*यों
गंगाराम सुआ।
अक्*सर लगते
सूनसान चौखट-देहरी तुम बिन,
गहरे सन्*नाटे में डूबे थे मेरे
पल-छिन,
तुम आए जैसे अम्*बर से
झर-झर झरी दुआ।
पोर-पोर
फगुनाई महकी रस-कचनार खिले,
महुआ-सी गमकी पुरवाई तुम जो
आज मिले,
दर्पण ने दर्पण को जैसे
सहसा आज छुआ।