ध्वजारोहण

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
ध्वजारोहण
दुख की कपास
कांटों की छाया में
वहम लिए खुशबू का
हिंसक मुस्कानों को
झेले रहे हम!
फूलों की बस्ती में
जीने की आस
बरसों से कात रही
दुख की कपास
जीवन के मोड़ों पर
भूख, प्यास, आंसू का
अलसाया, अनचाहा
मेल रहे हम!
तितली-सा
रंगीन सपना था जो
जलती हवाओं की
भेंट चढ़ा वो
हिरनी के शावक की
मुद्रा में आज
तेजाबी झरनों से
खेल रहे हम!​
 
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