धरती के वासियों की मुक्ती पिरीत में है

~¤Akash¤~

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सच कह दूँ ऐ बिरहमन*1 गर तू बुरा न माने
तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने



अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल*2 सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने



तंग आके मैंने आख़िर दैर-ओ-हरम को छोड़ा
वाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने



पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है



आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें

सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें



दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें



हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें



शक्ती भी शान्ती भी भक्तों के गीत में है
धरती के वासियों की मुक्ती पिरीत में है

शब्दार्थ :
*१ = ब्राम्हड़
*२ = धर्मयुद्ध
 
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