दर्द अघोरी

Saini Sa'aB

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दर्द अघोरी

दर्द अघोरी बड़े भोर से
अलख जगाये जोर शोर से।

आँखे रक्तिम और साँस में
मद की गंध समायी
पड़ा माँस का टुकड़ा भू-पर
हड्डी पड़ी चबायी

हिंसक लगता पोर-पोर से।

भिक्षापात्र बढ़ाकर बोले
इसमें कुछ तो डाल
चीर कलेजा रख दे या फिर
अपना लहू निकाल

ज्वाला फूटे कोर-कोर से।

मरघट की निष्प्राण चिता से
उठती है लपटें
जली देह को श्वानों के दल
खाने को झपटें

धुआँ उठता ओर-छोर से।
 
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